इंद्रधनुष मछली
बहुत दूर गहरे नीले सागर में एक मछली रहती थी. वह कोई साधारण मछली न थी. समूचे महासागर में वह सबसे सुंदर मछली थी. उसके शल्क अलग-अलग प्रकार के नीले और हरे और बैंगनी रंग के थे और उनमें कुछ शल्क तो चॉँदी समान उज्ज्वल्र थे.
उसकी सुंदरता देखकर अन्य मछल्नियाँ आश्चर्यचकित हो जाती थीं. वह उसे इंद्रधनुष मछली के नाम से बुलाती थीं. “आओ, इंद्रधनुष मछली,” वह पुकारती , आओ और हमारे साथ खेलो!” लेकिन अपने झिलमिलाते शल्कों का प्रदर्शन करते हए इंद्रधनुष मछली बड़े गर्व से उनके निकट से निकल जाती और उनसे बात
एक दिन एक नन्हीं नीली मछली उसके पीछे-पीछे आई. “इंद्रधनष मछली,” नन्हीं मछली ने कहा, “मेरी प्रतीक्षा करो! अपना एक संदर, चमकीला शल्क मझे दे दो तम्हारें शल्क इतने अद्भत हैं और तम्हारे पास तो यह बहत सारे हैं.”
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“तम चाहती हो कि अपना एक अनोखा शल्क | मैं तम्हें दे दूँ? तुम अपने-आप को समझती क्या हो?” इंद्रधनष मछली ने चिल्ला कर कहा “दूर हटो यहां से.”
नन्हीं मछली भौंचककी रह गई. वह तैर कर दूर चली गई. वह इतनी के हई कि उसने अपने सब मित्रों को इस के विषय में बताया उन्होंने तय किया कि वह इंद्रधनष मछली के साथ कोई मेल-मिलाप न रखेंगी. वह जब भी
» 5 निकट आती सब मछल्नियाँ उससे दूर चली जाती.
अगर कोई इनकी प्रशंसा ही न करे तो इतने झिलमिलाते, चकाचौंध कर देने वाले शल्कों का क्या लाभ? इंद्रधनष मछली ने सोचा. अब समचे महासागर में वह सबसे अकेली थी
एक दिन उसने अपने मन की व्यथा स्टारफिश को कह सनाई. “मैं सच में संदर हृ लेकिन कोई मुझे पसंद क्यों नहीं करता?”
“मैं इस प्रश्न का उत्तर नहीं दे सकती,” स्टारफिश ने कहा. “अगर तम मंगे की चट्टान के आगे स्थित गहरी गफा में जाओगी तो वहाँ तम्हें बद्धिमान ऑक्टोपस मिलेगा. शायद वह तम्हारी सहायता कर पाये.”
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अंधेरा था और उसे कुछ
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इंद्रधनूघ मछली ने गहरी के भीतर बहत आँ
न दे रहा था. फिर अचानक उसे दो
“में तम्हारी ही प्रतीक्षा कर रहा था,” ऑफक््टोपस ने संजीदा आवाज़ में कहा. “सागर की लहरों ने मझे तम्हारी कहानी सना दी है मेरा यह परामश है. हर मछली को अपना एक झिलमिलाता हआ शल्क दे दो. तम सागर में सबसे संदेर मछली तो न रहोगी, पर तम समझ जाओगे कि तम किस प्रकार प्रसन्न रह सकती हो.”
“में ऐसा नहीं कर सकती,” इंद्रधनष मछली कहने लगी लेकिन ऑक््टोपस तो गुफा के अंधकार में पहले ही गायब हो गया था.
अपने शल्क दे दूँ? अपने झिलमिलाते, संदर शल्क? कभी नहीं. उन के बिना में कैसे प्रसन्न रह सकती हू?
अचानक उसे लगा कि कोई उसे होले से छ रहा था. छोटी नीली मछली फिर वापस उसके पास आ गई थी
“इंद्रधनूष मछली, क्रोध न करो. मझे बस एक छोटा सा शल्क चाहिए.”
इंद्रधनष मछली हिचकिचाई. सिर्फ एक बहत-बहत छोटा झिलमिलाता शल्क, उसने साँचा. अरे, एक छोटे से शल्क की कमी मझे न खलेगी
बड़े ध्यान से इंद्रधनष मछली ने सबसे छोटा शल्क निकाला और ननन््हीं नीली मछली को दे दिया.
“धन्यवाद! बहत-बहत धन्यवाद!” नन्हीं नीली मछली ने प्रसन्नता से कहा और झिलमिलाता शल्क अपने नीले शल्कों के बीच लगा दिया
इंद्रध्नन मछली को एक अद्भत अहसास हआ. वह देर तक नन््हीं नीली मछली को प्रैसन्नता से पानी में इधर-उधर तैरते हए देखती रही. नन््हीं मछली का नया शल्के चमक रहा था.
अपने चमकते हए शल्क के साथ नन््हीं मछली सागर में तेज़ी से दूर तक तैरती चली गई और शीघ्र ही इंद्रधन॒ुष मछली अन्य मछलियों से घिर गई
हर एक को उसका एक चमकता हआ शल्क चाहिए था. इंद्रधनषन मछली सब को अपने शल्क निकाल कर देती रही. जितने अधिक वह अपने शल्क निकाल कर देती उतनी ही उसकी प्रसन्नता बढ़ती जाती. जब उसके चारों ओर पानी में संदर, रंग-बिरंगे शल्क झिलमिलाने लगे तो उसे लगा कि उन*'मछलियों के बीच वह अति-प्रसन्न थी
आखिरकार, इंद्रधनुष मछली के शरीर पर सिर्फ एक चमकीला शल्क ही बचा. अपनी सबसे मूल्यवान वस्तु उसने खुले मन से दूसरों को बाँट दी थी ओर ऐसा कर वह अति प्रसन्न थी.
“आओ, इंद्रधनुष मछली,” अन्य मछलियों ने कहा. “आओ हमारे साथ खेलो!”
“लो, में आ गई,” इंद्रधनष मछली ने कहा और प्रफ॒ल्लता से तैर कर अपने मित्रों के पास चली गई.
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समाप्त